हमारे पंजाब द जवाब नहीं

मुख्य समाचार ३१ मार्च २००९

कैप्टन कंवलजीत का रहा है पटियाला व आनंदपुर साहिब में खासा आधार
जालंधर अकाली दल के लिए निश्चित रूप से कैप्टन कंवलजीत सिंह की मृत्यु असहनीय पीड़ा है। राजनीति व सरकारी मामलों के जानकार कैप्टन कंवलजीत का निधन ऐसे समय हुआ है जब लोकसभा चुनाव सर पर हैं और अकाली दल के लिए यह चुनाव खासा महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस बार का लोकसभा चुनाव पार्टी अपने नए प्रधान व डिप्टी सीएम सुखबीर बादल की अगुवाई में लड़ रही है। किसानों में खासे लोकप्रिय कैप्टन कंवलजीत सिंह का पटियाला और आनंदपुर साहिब में खासा आधार रहा है। कैप्टन कंवलजीत चूंकि खुद ही बनूड़ से विधायक थे और चंडीगढ़ के साथ लगते खरड़, कुराली, मोहाली आदि इलाकों में उनका खासा दबदबा था।
सीट नहीं, अबये इज्जत का सवाल है!
बठिंडा लंबे समय बाद पंजाब की सबसे बड़ी सियासी जंग का गवाह बनने जा रहा है। एक तरफ हैं पटियाला के शाही खानदान के महाराजा कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रणइंदर सिंह और दूसरी तरफ हैं पंजाब पर राज कर रहे प्रकाश सिंह बादल की बहू व सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बादल के गृह क्षेत्र से अपने बेटे टिक्कू (रणइंदर)को उतारने का फैसला भावावेश में नहीं, बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत लिया। बादल का गांव व गृह क्षेत्र लंबी इसी इलाके में होने के बावजूद पिछले विधानसभा चुनाव में पूरे राज्य में हारी कांग्रेस ने बटिंठा की नौ सीटों में से सात सीटें जीती थीं। अपने गढ़ में अमरिंदर की इस चुनौती का मुंहतोड़ जवाब देने के इरादे से बादल ने भी अपनी बहू बीबा जी (हरसिमरत) को यहां से उतार मुकाबले को इज्जत का सवाल बना दिया। वैसे भी यह मुकाबला सिर्फ दो सियासी खानदानों के बीच वर्चस्व की जंग की वजह से ही दिलचस्प नहीं है। डेरा सच्चा सौदा और उसके समर्थकों की यहां बड़ी तादाद ने इसे और रोचकबना दिया है। गुरु गोबिंद सिंह का रूप धर जाम-ए-इंसा पिलाने वाले गुरमीत राम रहीम सिंह के जमाई हरमिंदर सिंह जस्सी यहां से कांग्रेस के विधायक हैं।
(सौजन्य : दैनिक जागरण)